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जुलाई, 2025 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

ROE, EPS, Debt-to-Equity जैसे Ratios कैसे पढ़ें और समझें?

  ROE, EPS, और Debt-to-Equity जैसे फाइनेंशियल रेश्यो कंपनी की फाइनेंशियल हेल्थ को समझने के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। आइए इन्हें विस्तार से समझें: 1. रिटर्न ऑन इक्विटी (ROE) – Return on Equity फॉर्मूला ROE = शेयरहोल्डर्स   इक्विटी  (Shareholders’ Equity) नेट   इनकम  (Net Income) ​ × 100 क्या दर्शाता हैं - ROE कंपनी की प्रॉफिट जनरेट करने की क्षमता को दर्शाता है। यह बताता है कि शेयरहोल्डर्स के निवेश पर कंपनी कितना रिटर्न कमा रही है।   - **उच्च ROE** अच्छा माना जाता है, लेकिन बहुत ज्यादा ROE (जैसे 50%+) कर्ज़ (डेट) के ज्यादा इस्तेमाल की वजह से भी हो सकता है।   कैसे पढ़ें - **15%+ ROE**: अच्छा माना जाता है (उदा. FMCG, टेक कंपनियाँ)।   - **<10% ROE**: कमजोर परफॉरमेंस (जब तक कि यह कैपिटल-इंटेंसिव सेक्टर न हो, जैसे इंफ्रास्ट्रक्चर)।   - **ROE की तुलना** हमेशा उसी इंडस्ट्री की दूसरी कंपनियों से करें।   2. अर्निंग्स पर शेयर (EPS) – Earnings Per Share फॉर्मूला EPS = कुल   आउटस्टैंडिंग   शेयर्स  (O...

बैलेंस शीट (Balance Sheet) कैसे पढ़ें? – पूरी जानकारी

बैलेंस शीट  किसी भी कंपनी की वित्तीय स्थिति का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज होता है, जो उसकी **संपत्ति (Assets), देनदारियाँ (Liabilities), और शेयरधारकों की इक्विटी (Shareholders' Equity)** को दर्शाता है। इसे **"Statement of Financial Position"** भी कहा जाता है।   1. बैलेंस शीट का फॉर्मेट बैलेंस शीट निम्नलिखित मूल समीकरण पर आधारित होती है:   Assets = Liabilities + Shareholders' Equity  (संपत्ति = देनदारियाँ + शेयरधारकों की इक्विटी)   इसे दो भागों में बाँटा जाता है:   -दायित्व पक्ष (Liabilities Side) - संपत्ति पक्ष (Assets Side) A. संपत्ति (Assets) संपत्ति वे चीज़ें हैं जिन पर कंपनी का स्वामित्व होता है और जिनसे भविष्य में आर्थिक लाभ मिलने की उम्मीद होती है। इसे दो भागों में बाँटा जाता है:   (i) चालू संपत्ति (Current Assets) ये ऐसी संपत्तियाँ हैं जिन्हें 1 साल के अंदर नकद में बदला जा सकता है।   - **नकद और नकद समतुल्य (Cash & Cash Equivalents)**   - **प्राप्य खाते (Accounts Receivable)** – ग्राहकों से प्राप्त होन...

# **Fundamental Analysis कैसे करें? – Step by Step**

फंडामेंटल एनालिसिस (Fundamental Analysis) किसी कंपनी, इंडस्ट्री या इकोनॉमी के आर्थिक स्वास्थ्य का मूल्यांकन करने की एक विधि है। यह निवेशकों को यह तय करने में मदद करता है कि कोई स्टॉक, बॉन्ड या अन्य एसेट खरीदने लायक है या नहीं।   ## **फंडामेंटल एनालिसिस करने के स्टेप्स**   ### **1. इकोनॉमिक एनालिसिस (Economic Analysis)**   सबसे पहले मैक्रोइकॉनॉमिक फैक्टर्स को समझें:   - **GDP ग्रोथ** – देश की आर्थिक वृद्धि दर   - **इन्फ्लेशन (मुद्रास्फीति)** – महंगाई दर   - **ब्याज दर (Interest Rates)** – RBI की मौद्रिक नीति   - **बेरोजगारी दर (Unemployment Rate)**   - **विदेशी व्यापार (Foreign Trade)** – एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट डेटा   ### **2. इंडस्ट्री एनालिसिस (Industry Analysis)**   - **इंडस्ट्री ग्रोथ** – सेक्टर कितना तेजी से बढ़ रहा है?   - **कंपटीशन लेवल** – मार्केट में कितनी कंपटीशन है?   - **गवर्नमेंट पॉलिसीज** – सेक्टर पर सरकारी नियमों का प्रभाव   - **टेक्नोलॉजिकल चेंजेस*...

💰 Compounding Magic: निवेश को करोड़ों तक कैसे ले जाएं?

 “Compound interest is the eighth wonder of the world. He who understands it, earns it… he who doesn’t, pays it.” – Albert Einstein क्या आपने कभी सोचा है कि ₹5000 प्रति माह का निवेश आपको करोड़पति बना सकता है? सुनने में ये किसी जादू से कम नहीं लगता। लेकिन ये जादू नहीं, बल्कि Compounding का विज्ञान है। आज हम इस ब्लॉग में समझेंगे कि: कंपाउंडिंग क्या है? कैसे ये आपकी पूंजी को exponential यानी तेजी से बढ़ा सकता है? क्या-क्या रणनीति अपनाकर आप करोड़ों तक पहुंच सकते हैं? 🧠 कंपाउंडिंग क्या है? कंपाउंडिंग (Compounding) एक ऐसा चक्र है जिसमें आपके पैसे से पैसा बनता है और फिर उस पैसे से और पैसा बनता है। यानी आपको interest पर भी interest मिलता है। सरल उदाहरण: अगर आपने ₹10,000 को 12% ब्याज पर लगाया तो पहले साल के अंत में आपको मिलेगा ₹1,200। दूसरे साल आपको ₹1,200 नहीं, बल्कि ₹1,344 मिलेगा क्योंकि इस बार ब्याज ₹11,200 पर लगेगा। इसी को कंपाउंडिंग कहते हैं। 📊 कंपाउंडिंग की ताक़त: एक उदाहरण मासिक निवेश वार्षिक रिटर्न अवधि कुल निवेश मैच्योरिटी अमाउंट ₹5,000 12% 25 साल ₹15 लाख ₹95 ल...

📊 Asset Allocation क्या है? कैसे बनाएं Balanced Portfolio?

  निवेश की दुनिया में सफलता का असली मंत्र! 🔷 निवेश सिर्फ कमाई नहीं, समझदारी भी है जब भी हम निवेश की बात करते हैं, तो ज़्यादातर लोगों का ध्यान सीधे रिटर्न (Return) की ओर जाता है। लेकिन एक समझदार निवेशक वही है जो केवल मुनाफा नहीं, बल्कि जोखिम (Risk) और स्थिरता (Stability) को भी संतुलित करता है। Asset Allocation इस संतुलन का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है। यह तय करता है कि आपका पोर्टफोलियो न केवल लाभ कमाए, बल्कि गिरते बाज़ार में भी बचा रहे। 🔶 Asset Allocation क्या होता है? Asset Allocation का अर्थ है – आपके कुल निवेश (Investment) को अलग-अलग एसेट क्लासेज़ (Asset Classes) में इस प्रकार बाँटना कि आपका रिस्क कम हो और लक्ष्य की प्राप्ति समय पर हो सके। मुख्यतः यह 4 प्रकार के एसेट्स होते हैं: एसेट क्लास क्या है? उदाहरण Equity शेयर मार्केट में हिस्सा शेयर, Equity Mutual Funds Debt निश्चित आय वाले निवेश FD, PPF, Bonds, Debt Mutual Funds Gold Hedge और Store of Value Physical Gold, SGB, Gold ETF Real Estate अचल संपत्ति घर, दुकान, जमीन आदि ✅ Asset Allocation क्यों ज़रूरी है? जोखिम में सं...

🆚 SIP vs Lump Sum Investment: कौन बेहतर है और कब करें?

  "निवेश का तरीका आपकी सफलता तय करता है, केवल निवेश नहीं।" शेयर बाजार, म्यूचुअल फंड, या किसी भी निवेश विकल्प में निवेश करते समय एक बड़ा सवाल हर निवेशक के सामने आता है — SIP करें या Lump Sum? दोनों के अपने-अपने फायदे हैं, लेकिन यह समझना ज़रूरी है कि कौन-सा तरीका आपके लक्ष्यों, जोखिम क्षमता और मार्केट कंडीशन के हिसाब से बेहतर है। आइए दोनों निवेश तरीकों को विस्तार से समझते हैं: 🔁 SIP (Systematic Investment Plan) क्या है? SIP एक ऐसा तरीका है जिसमें आप नियमित अंतराल पर (मासिक/तिमाही) एक निश्चित राशि निवेश करते हैं। ये निवेश आमतौर पर म्यूचुअल फंड में होते हैं। ✔ SIP के फायदे: Rupee Cost Averaging: मार्केट ऊपर-नीचे होता है, लेकिन SIP के जरिए आपको यूनिट्स अलग-अलग दामों पर मिलती हैं जिससे औसत लागत कम हो जाती है। Discipline: निवेश में अनुशासन आता है क्योंकि हर महीने एक तय राशि निवेश होती है। Compounding का फायदा: लंबे समय तक नियमित निवेश करने से आपको चक्रवृद्धि ब्याज का ज़बरदस्त लाभ मिलता है। कम पूंजी से शुरुआत: ₹500 या ₹1000 से भी शुरुआत कर सकते हैं। 🛑 SIP के न...